जीवन की किसी भी अवस्था में कर्मफल पर आसक्ति रखे बिना यदि कर्तव्य उचित रूप से किया जाए तो आत्मिक शांति महसूस होती है। अनासक्त होकर एक स्वतंत्र व्यक्ति की तरह कार्य करना और समस्त कर्म भगवान को समर्पित कर देना ही असल में हमारा एक मात्र कर्तव्य है।
via Web Dunia
http://hindi.webdunia.com/religion-article/हमारा-कर्तव्य-क्या-है-1130507103_1.htm
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