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Thursday, May 2, 2013

तू कर्म कर, फल की इच्छा मत कर

धर्म शब्द का तात्पर्य है नैतिक व जनकल्याण के मूल्यों को धारण करना। पूजा-पाठ, प्रार्थना, स्तुति आदि कर्मकांड केवल धर्म के छोटे अंग हैं। नैतिकता से यहां अभिप्राय है कि धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को अर्जित करने में शुचिता व जनकल्याण की भावना भी निहित हो।



via जागरण धर्म समाचार

http://www.jagran.com/spiritual/religion-11697.html

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