अंखियां हरि-दरसन की प्यासी। देख्यौ चाहति कमलनैन कौ़ निसि-दिन रहति उदासी।। आए ऊधै फिरि गए आंगऩ डारि गए गर फांसी। केसरि तिलक मोतिन की माला़ वृन्दावन के बासी।। काहू के मन को कोउ न जानत़ लोगन के मन हांसी। सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौ़ करवत लैहौं कासी।। हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल में कृष्ण भक्ति के भक्त कवियो
via जागरण संत-साधक
http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-poet-surdas-10393417.html
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