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Wednesday, May 15, 2013

महाकवि सूरदास

अंखियां हरि-दरसन की प्यासी। देख्यौ चाहति कमलनैन कौ़ निसि-दिन रहति उदासी।। आए ऊधै फिरि गए आंगऩ डारि गए गर फांसी। केसरि तिलक मोतिन की माला़ वृन्दावन के बासी।। काहू के मन को कोउ न जानत़ लोगन के मन हांसी। सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौ़ करवत लैहौं कासी।। हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल में कृष्ण भक्ति के भक्त कवियो



via जागरण संत-साधक

http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-poet-surdas-10393417.html

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