प्रत्यक्ष और सद्य:प्रत्यक्ष में स्वभावगत भेद है। प्रत्यक्ष विषम होता है और सद्य:प्रत्यक्ष सम। किसी मध्यस्थ के बगैर ज्ञ्ोय वस्तु को जानना ही सद्य: प्रत्यक्ष है। एक ही सिक्का सामने से देखने पर गोल और बगल से देखने पर अंडाकार लगता है। चूंकि संसार प्रतिक्षण बदलता रहता है, इसलिए उसका प्रत्यक्ष ज्ञान भी परिवर्तनीय है। आत्मा सम है और इसीलिए उसका सद्य:प्रत्यक्ष समरस बना
via जागरण संत-साधक
http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-perception-is-modifiable-10474769.html
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