गंगा सदियों से हमें जीवन देती आई है और हम इस जीवनदायिनी का ही अस्तित्व मिटाने पर उतारू हैं। यह बेहद चिंताजनक स्थिति है। गंगा की अविरल धारा का प्रवाह थामकर उसे बांधने की कोशिशें हमारा अस्तित्व मिटा डालेंगी। इसलिए बेहतर यही होगा कि हम गंगा से छेड़छाड़ करना बंद करें। अन्यथा एक सभ्यता और संस्कृति का अंत होते देर नहीं
via जागरण धर्म समाचार
http://www.jagran.com/spiritual/religion-not-ganga-we-are-erasing-culture-shankaracharya-10442037.html
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