द्रोणनगरी में चतुर्थ नवरात्र पर मां भगवती के चौथे स्वरूप देवी कूष्मांडा की श्रद्धा और उल्लास के साथ पूजा-अर्चना हुई। मंदिरों में चल रहे प्रवचनों में कहा कि भक्ति के बिना जीव की मुक्ति संभव नहीं है। ईश्वर की प्राप्ति के लिए भक्ति ही श्रेष्ठ कर्म है। जो साधक इस सत्य को जान जाता है, देवी कूष्मांडा उसके समस्त पाप और कष्टों को हर लेती हैं
via जागरण धर्म समाचार
http://www.jagran.com/spiritual/religion-views-of-the-grand-maa-bhadrakali-flood-10784753.html
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