देहरादून। गढ़वाली में जगमोहन सिंह जयाड़ा की कविता है, 'जै दिन बानी-बानी का, पकवान बणदा छन, वे दिन कु बोल्दा छन, रे छोरों आज पड़िगी, बल तुमारी बग्वाल।' सचमुच ऐसा ही रूप रहा है पहाड़ में बग्वाल का। 'बग्वाल' व 'इगास' संभवत: गढ़वाली में दीपावली के ही पर्यायवाची हैं। एक दौर में इन दोनों दिन उत्तराखंड में भैलो (बेलो) खेलने की परंपरा थी,
via जागरण धर्म समाचार
http://www.jagran.com/spiritual/religion-dipavli-blind-blind-diva-jagi-gaina-10831361.html
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