Loading...
Wednesday, October 30, 2013

दिपावली: झिलमिल-झिलमिल दिवा जगि गैना

देहरादून। गढ़वाली में जगमोहन सिंह जयाड़ा की कविता है, 'जै दिन बानी-बानी का, पकवान बणदा छन, वे दिन कु बोल्दा छन, रे छोरों आज पड़िगी, बल तुमारी बग्वाल।' सचमुच ऐसा ही रूप रहा है पहाड़ में बग्वाल का। 'बग्वाल' व 'इगास' संभवत: गढ़वाली में दीपावली के ही पर्यायवाची हैं। एक दौर में इन दोनों दिन उत्तराखंड में भैलो (बेलो) खेलने की परंपरा थी,




via जागरण धर्म समाचार

http://www.jagran.com/spiritual/religion-dipavli-blind-blind-diva-jagi-gaina-10831361.html

0 comments:

Post a Comment

 
TOP