आसक्ति और आकर्षण से होता हुआ प्रेम जब अनंत या ईश्वरीय प्रेम का रूप धारण कर लेता है, तब व्यक्ति निष्काम प्रेमी बन जाता है। स्वामी विवेकानंद का चिंतन.. जब प्रेम बढ़कर सर्वव्यापी प्रेम या अनंत प्रेम का रूप धारण कर लेता है, तब हम पराभक्ति परम अनुराग में पहुंचते हैं, जहां अनुष्ठान्
via जागरण संत-साधक
http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-vivekanandas-musings-loving-cup-10900218.html
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