दीपावली की रात दीया-बाती के बाद एक अलग दीया बारने और उसे घंट (घंटे की आकृति का माटी का पात्र) से ढककर पवित्र काजल पारने की एक पुरानी प्रथा काशी और उसके आसपास के क्षेत्रों में आज भी बदस्तूर निभाई जा रही है। हालांकि 'आई लाइनर' के युग में काजल का पूछनहार कौन है मगर इसे 'अखंड ज्योति' का शुभ और मांगलिक उपहार
via जागरण धर्म समाचार
http://www.jagran.com/spiritual/religion-diya-come-about-kajr-paren-10835602.html
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