परिकल्पना जब धर्म की अवधारणा सत्कर्म की जब पा रही विस्तार थी जग में हुई साकार थी। वह घोष पांचजन्य का, गाण्डीव की टंकार थी।।
via Web Dunia
http://hindi.webdunia.com/religion-hindu/गीता-जयंती-पर-कविता-वह-घोष-पांचजन्य-का-1131212020_1.htm
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