आत्म-सत्ता को यदि परिष्कृत कर लिया जाए, तो वही परमात्म-सत्ता में विकसित हो सकती है अर्थात यदि हम अपने गुणों को निखार लें, तो हम अपने भीतर के भगवान को जान सकते हैं। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का चिंतन.. समझा जाता है कि विधाता ही मात्र निर्माता है। ईश्वर की इच्छा के बिना पत्ता
via जागरण संत-साधक
http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-shriram-sharma-acharyas-musings-the-god-within-10957735.html
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