अपने लिए कोई भी सांसारिक इच्छा न रखने वाले तथा परोपकार में अपना जीवन बिताने वाले को ही संत कहते हैं। रविदास जी ऐसे ही संत थे, जिनके लिए उनका उनका कर्म और परोपकार ही पूजा था। अपना सांसारिक हित करने की इच्छा समाप्त होकर जब परहित की इच्छा प्रबल हो जाती है, तब ऐ
via जागरण संत-साधक
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