फगुनहट का भेस धरती तीखी पुरवाई, बागों से खेतों तक पसरी पियराई। गंगा की लहरों की अल्हड़ अंगड़ाई, रातों-रात गमक उठी सोई अमराई। कहती है विदा शीत! जाता हेमंत है, फगुआ के गीत कहें, घर आए मीत कहें बागन से आंगन तक बगरो वसंत है। शहर से गांवों तक, डहर से पड़ावों तक वासंती रंगों की बरात उतर आई है। सैलानियों की जोश
via जागरण धर्म समाचार
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