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Saturday, March 22, 2014

न मन कभी तृप्त होता है न जीव संतुष्ट

कामना दो तरह की होती है। परमार्थिक और लौकिक। परमार्थिक कामना के भी दो प्रकार हैं। मुक्ति अर्थात् कल्याण तथा भक्ति अर्थात भगवत्वप्रेम की कामना। श्री शिरडी साईं संध्या मंदिर स्थित द्वारकामाई सभागार से साप्ताहिक प्रवचन करते हुए श्री साईंचरणानुरागी भाई डा. कुमार दिलीप सिंह ने कहा कि मुक्ति की अभिलाषा से उत्पन्न जिज्ञासा को कामन




via जागरण धर्म समाचार

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