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Friday, April 18, 2014

उत्तराखंड आपदा: उम्मीद ही नहीं परंपरा भी टूटी

'धरा पर थम गई आंधी, गगन में कांपती बिजली, घटाएं आ गई अमराइयों तक, तुम नहीं आए और नदी के हाथ निर्झर की, मिली पाती समंदर को, सतह भी आ गई गहराइयों तक, तुम नहीं आए।' प्रसिद्ध कवि बलवीर सिंह 'रंग' ने ये पंक्तियां भले ही किसी भी संदर्भ में कही हों, लेकिन आपदा के बाद के दौर पर ये सटीक बैठती हैं। आपदा के बाद त




via जागरण धर्म समाचार

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