प्रेम के संदर्भ में एक छोटे से दोहे में संत कबीरदास ने बड़े ही मर्म की बात कही है, जिसका आशय है, 'प्रेम खेत (बाड़ी) में नहीं उपजता, न वह बाजार (हाट) में ही बिकता है, बल्कि वह सर्वत्र विद्यमान है। राजा या प्रजा या फिर धनवान या निर्धन (साधारण मनुष्य) यदि चाहे, तो वह प्रेम को विनम्रता से प्राप्त कर सकता है। वस्तुत: जीवन को सुखमय बनाने का एकम
via जागरण धर्म समाचार
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