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Thursday, May 15, 2014

सुख की भीतरी नदी, हमारे दुख के क्या कारण है

महात्मा बुद्ध ने कहा था कि जीवन दुखाय है, किंतु उन्होंने दुख के कारणों और उसे दूर करने के उपायों पर भी प्रकाश डाला है। बुद्ध दुख की नाव पर बैठाकर सुख की भीतरी नदी में ले जाते हैं। धम्मपद का पहले ही पद का अर्थ है- 'मन सभी प्रवृत्तियों का अगुआ है। यदि कोई दूषित मन से वचन बोलत




via जागरण संत-साधक

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