धार्मिक अनुष्ठान के बहाने ही सही, आपदा प्रभावित खुद आगे आए और केदारघाटी में भविष्य की उम्मीदें जवान होने लगी। ऐसा लगा ही नहीं कि यह घाटी आपदा में पूरी तरह तबाह हो चुकी है। 15 जून को आते वक्त जो आंखें आंसुओं में नम थी, उन्हीं आंखों में 22 जून को लौटते वक्त संकल्प तैर रहा था। खुद के अंदर से बाहर निकलने का संकल्प।
via जागरण धर्म समाचार
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