आम तौर पर हम अपनी वृत्ति (प्रकृति) के गुलाम होते हैं। मीठी बातों पर मुस्कुराते रहते हैं, लेकिन जब कोई कड़वी बात कह दे तो दुखी हो जाते हैं। भीतर की स्वाधीनता के लिए हमें अपनी वृत्ति से निवृत्ति पानी होगी। स्वामी विवेकानंद के स्मृति दिवस (4 जुलाई) पर उनका चिंतन.. एक बार जब
via जागरण संत-साधक
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