गुरु अंगुली पकड़कर नहीं चलाता, बल्कि शिष्य के मार्ग को प्रकाशित कर देता है। चलना शिष्य को ही पड़ता है। पूरे संसार में यह गुरु-तत्व व्याप्त है, तभी हम किसी से भी कुछ भी सीख सकते हैं। व्यास उमाशंकर शर्मा का चिंतन.. हमारी संस्कृति में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश से भ्
via जागरण संत-साधक
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