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Sunday, April 28, 2013

महादेव को प्रसन्न करता है बेलपत्र


भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र यानी बेल पत्र का विशेष महत्व है। इसके वृक्ष के नीचे पूजा पाठ करना पुण्यदायक माना जाता है। शिव की अर्चना करते समय शिवलिंग पर बेलपत्र और दूध अथवा पानी चढ़ाया जाता है। सामान्यतःबेलपत्र तीन पत्तों वाला होता है।   पांच पत्तों वाला बेलपत्र अधिक शुभ माना जाता है। पूजा की सामग्री में बेलपत्र और गंगाजल का समावेश होता है। ज्येष्ठा नक्षत्र युक्त जेठ के महीने की पूर्णिमा की रात्रि को बिल्वरात्र व्रत किया जाता है।

बेल वृक्ष की महिमा 

महादेव एक बेलपत्र अर्पण करने से भी प्रसन्न हो जाते है, इसलिए तो उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है। सामान्य तौर पर बेलपत्र में एक साथ तीन पत्तियां जुडी रहती हैं जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। वैसे तो बेलपत्र की महिमा का वर्णन कई पुराणों में मिलता है, लेकिन शिवपुराण में इसकी महिमा विस्तृत रूप में बतायी गयी है। शिव पुराण में कहा गया है कि बेलपत्र भगवान शिव का प्रतीक है। भगवान स्वयं इसकी महिमा स्वीकारते हैं।  मान्यता है कि बेल वृक्ष की जड़ के पास शिवलिंग रखकर जो भक्त भगवान शिव की आराधना करते हैं, वे हमेशा सुखी रहते हैं। बेल वृक्ष की जड़ के निकट शिवलिंग पर जल अर्पित करने से उस व्यक्ति के परिवार पर कोई संकट नहीं आता और वह सपरिवार खुश और संतुष्ट रहता है। कहते हैं कि बेल वृक्ष के नीचे भगवान भोलेनाथ को खीर का भोग लगाने से परिवार में धन की कमी नहीं होती है और वह व्यक्ति कभी निर्धन नहीं होता है। बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में स्कंदपुराण में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षकन्या, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं। कहा जाता है कि बेल वृक्ष के कांटों में भी कई शक्तियां समाहित हैं। यह माना जाता है कि देवी महालक्ष्मी का भी बेलवृक्ष में वास है। जो व्यक्ति शिव-पार्वती की पूजा बेलपत्र अर्पित कर करते हैं, उन्हें महादेव और देवी पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है।

बेलपत्र से महादेव की पूजा का रहस्य

भगवान शिव को औढ़रदानी कहते हैं। शिव का यह नाम इसलिए है क्योंकि वह जब देने पर आते हैं तो भक्त जो भी मांग ले बिना हिचक दे देते हैं। इसलिए सकाम भावना से पूजा-पाठ करने वाले लोगों को भगवान शिव अति प्रिय हैं।  भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या और भोग सामग्री की भी जरूरत होती है जबकि शिव जी थोड़ी सी भक्ति और बेलपत्र एवं जल से भी खुश हो जाते हैं। यही कारण है कि भक्तगण जल और बेलपत्र से शिवलिंग की पूजा करते हैं। शिव जी को ये दोनों चीजें क्यों पसंद हैं इसका उत्तर पुराणों में दिया गया है। समुद्र मंथन के समय जब हलाहल नाम का विष निकलने लगा तब विष के प्रभाव से सभी देवता एवं जीव-जंतु व्याकुल होने लगे। ऐसे समय में भगवान शिव ने विष को अपनी अंजुली में लेकर पी लिया। विष के प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए शिव जी ने इसे अपनी कंठ में रख लिया इससे शिव जी का कंठ नीला पड़ गया और शिव जी नीलकंठ कहलाने लगे। लेकिन विष के प्रभाव से शिव जी का मस्तिष्क गर्म हो गया। ऐसे समय में देवताओं ने शिव जी के मस्तिष्क पर जल उड़लेना शुरू किया जिससे मस्तिष्क की गर्मी कम हुई। बेल के पत्तों की तासीर भी ठंडी होती है इसलिए शिव जी को बेलपत्र भी चढ़ाया गया। इसी समय से शिव जी की पूजा जल और बेलपत्र से शुरू हो गयी। ऐसी मान्यता है कि बेलपत्र और जल से शिव जी का मस्तिष्क शीतल रहता है और उन्हें शांति मिलती है। इसलिए बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले पर शिव जी प्रसन्न होते हैं।

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