यदि मनुष्य आत्मचेतना को अनंतगुनी कर ले और उसका अनुभव सर्वत्र करे, तो वह ईश्वर जैसा बन सकता है। स्वामी विवेकानंद का चिंतन.. मनुष्य एक असीम वृत्त है, जिसकी परिधि कहीं नहीं है। लेकिन उसका केंद्र एक स्थान पर निश्चित है। वहीं परमेश्वर एक ऐसा वृत्त है, जिसकी परिधि कहीं नहीं ह
via जागरण संत-साधक
http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-vivekananda-knowledge-of-consciousness-10408169.html
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