महर्षि वाल्मीकि के अनुसार पूर्व जन्म में किया हुआ कर्म ही भाग्य कहलाता है। इसलिए पुरुषार्थ किए बिना भाग्य का निर्माण नहीं हो सकता। हमारे पौराणिक ग्रंथ बतलाते हैं कि मनुष्य के भीतर की आत्मा उसके भाग्य से भी अधिक शक्तिशाली है। किंतु इसके साथ ही कर्म को भी अत्यधिक महत्व दिया है। सही तरीके से किया गया कर्म ध्यान बन जाता है।
via Web Dunia
http://hindi.webdunia.com/religion-article/कर्म-ही-ईश्वर-की-सच्ची-सेवा-1130518030_1.htm
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