हृदय को नजरअंदाज कर बुद्धि का अनुसरण करने से हम स्वार्थी बन जाते हैं। स्वामी विवेकानंद का चिंतन.. कोई भी धर्मग्रंथ हमें धार्मिक नहीं बना सकता। चाहे हम दुनिया के सारे धर्मग्रंथ पढ़ डालें, परंतु फिर भी ईश्वर या धर्म का हमें तनिक भी ज्ञान नहीं होता। हमारी आध्यात्मिक उन्नति नहीं होत्
via जागरण संत-साधक
http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-intellect-and-heart-10446771.html
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