सत्कर्म द्वारा लोगों को सुखी बनाना अच्छी बात है, लेकिन उससे कोई अपेक्षा नहीं होनी चाहिए। यही कर्म का मर्म है। स्वामी विवेकानंद के सार्धशती वर्ष में उनके स्मृति दिवस पर उनका ही चिंतन.. भिन्न परिस्थितियों में कर्तव्य भिन्न-भिन्न हो जाते हैं। जो कार्य एक अवस्था में नि:स्वार्थ होता है, वही
via जागरण संत-साधक
http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-quintessence-of-karma-10571008.html
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