जीवन में व्यक्ति के अनेक मित्र व शत्रु होते हैं। मित्र उसकी सफलता और प्रगति की ओर ले जाने में सहायक होते हैं। वहीं शत्रु उसे अवसान की ओर ले जाते हैं। मित्र और शत्रु केवल व्यक्ति ही नहीं, बल्कि मानवीय भाव भी हो सकते हैं। अहंकार भी मनुष्य के अंदर पनपने वाला एक ऐसा ही शत्रु है। अहंकार के बीज को अपने हृदय में पनपने का अवसर ही नहीं दे
via जागरण धर्म समाचार
http://www.jagran.com/spiritual/religion-destroy-the-ego-modestly-10692478.html
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