किसी भी कार्य, वस्तु या व्यक्ति के प्रति आसक्ति हमें अशक्त कर देती है। यही दुखों का मूल है। स्वामी विवेकानंद का चिंतन.. हम कोई काम हाथ में लेते हैं और उसे पूरा करने में अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं। कभी-कभी विफलता मिलती है, फिर भी हम उसे त्याग नहीं पाते। यह आसक्ति ही हमारे
via जागरण संत-साधक
http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-swami-vivekanandas-musings-the-origin-of-suffering-is-attachment-10970600.html
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