जब मनुष्य अनंत प्रेम यानी ईश्वर की ओर अग्रसर हो जाता है, तब वह सारी वासनाओं को दूर करता हुआ स्वयं ईश्वररूप हो जाता है। हम देखते हैं कि सभी भिन्न-भिन्न प्रणालियां अंत में उसी एक लक्ष्य पूर्ण एकता में पहुंचती हैं। हम आरंभ में द्वैतवादी ही रहते हैं। उस समय यह भावना रहती है कि ईश्वर त
via जागरण संत-साधक
http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-swami-vivekanandas-musings-mans-conversion-10925382.html
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