सुबह एक-डेढ़ घंटे पार्क में आसन-प्रायाणाम करने को ही लोग योग मानते हैं, किंतु योग इतना भर नहीं, अपितु अपने मन की कामनाओं को ज्ञान की लगाम से सही दिशा और दशा देना है.. यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया। यत्र चैवात्मनात्मनं पश्यन्नात्मनि तुष्यति।। श्रीमद्भगवद्गीता के
via जागरण संत-साधक
http://ift.tt/1g76nfL
0 comments:
Post a Comment