जब तक हम सूक्ष्म को मन में नहीं ग्रहण कर पाते, तब तक हमें मूर्तियों के सहारे ही उपासना करनी होती है। मूर्तिपूजा को लेकर विवाद पैदा करना उचित नहीं। स्वामी विवेकानंद का चिंतन.. यदि कोई कहे कि प्रतीक, अनुष्ठान और विधियां सदैव रखने की चीजें हैं, तो उसका यह कहना गलत है, पर य
via जागरण संत-साधक
http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-idolatry-means-contemplation-of-swami-vivekananda-10982680.html
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