भगवती सरस्वती विशुद्ध ज्ञान स्वरूपा हैं। उन्हें सामवेदात्मक शुद्ध सत्व-स्वरूप आदित्य के धर्म की प्रवर्तिका माना जाता है। मां सरस्वती प्रत्येक जीव में शुद्ध चेतना के रूप में प्रतिष्ठित रहती हैं। चूंकि हमारे भीतर चेतना रूप में सरस्वती विराजमान हैं, इसलिए हमें अपनी चेतना को श्रेष्ठ कायरें में लगाकर उसे ऊर्धवमुखी बनाना चाहिए। वसंत पंचमी के दिन माता सरस्वत
via जागरण धर्म समाचार
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