जो व्यक्ति जितना भयभीत होता है, वह उतना ही हिंसक हो जाता है। इसलिए भय को पराजित करने यानी अभय पाने और देने के लिए अहिंसा का वरण करना होगा। आचार्य तुलसी के जन्मशती वर्ष पर उनका चिंतन.. हिंसा हम उसे मानते हैं, जिसके तहत एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की जान लेने की कोशिश न करे। म्
via जागरण संत-साधक
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