सारे काम-धाम (कर्म) छोड़कर साधना करना ध्यान नहींहै। ध्यान के लिए कर्म एक आलंबन का काम करता है। बिना ध्यान के कोई काम पूरा भी नहींहो सकता। जब ध्यान और कर्म एक साथ सधता है, तब प्रज्ञा उत्पन्न होती है। आचार्य विनोबा भावे का चिंतन.. तस्मात य इह मनुष्याणां महत्तां प्राप्नुवंति
via जागरण संत-साधक
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