प्रेम अगर फूल है, तो प्रार्थना उसकी सुवास। अपने भीतर इस जगत के प्रति प्रेम और जागरूकता पैदा करने से ही हम ईश्वर तक पहुंच सकते हैं। यही हमारी अपनी प्रार्थना होगी। ओशो का चिंतन.. प्रार्थना प्रेम का परिष्कार है। प्रेम अगर फूल है तो प्रार्थना फूल की सुवास। प्रेम थोड़ा स्थूल है, प
via जागरण संत-साधक
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