दिनभर श्रद्धालुओं की चहल-पहल और रात को मंदिरों के पट बंद होने के साथ पसर जाता है सन्नाटा। जरूरत पड़ने पर श्रद्धालुओं की सुविधा का ख्याल रखने वाला कोई नहीं। यातायात और मेडिकल जैसी इमरजेंसी सेवा और न पुलिस का पहरा। आम जनमानस घरों में तो श्रद्धालु गेस्टहाउस व होटलों में कैद हो जाते हैं। सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाने वाली
via जागरण धर्म समाचार
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