जो मनुष्य अतीत और भविष्य के आकर्षण को स्वीकार न कर वर्तमान के कर्म में जीता है, वही श्रेष्ठ है। वर्तमान के हर एक क्षण को जीना तभी संभव है, जब अतीत और भविष्य परमात्मा को समर्पित कर दिए जाएं। ओशो का गीता आधारित चिंतन.. युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शांतिमाप्नोति नैष्ठिकीम्। अयुक्त
via जागरण संत-साधक
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