उम्मीदें जागती हैं और जागते ही भरभराकर ढह जाती हैं। रेत के कंगूरे की तरह। तभी तो केदारघाटी के लोगों ने जागती आंखों से सपने देखना छोड़ दिया है। लेकिन, सरकार फिर भी सपना दिखा रही है। सुखद एवं सुरक्षित यात्रा का सपना, जीवन को दोबारा पटरी पर लौटाने का सपना, उदास आंखों में आत्मविश्वास जगाने का
via जागरण धर्म समाचार
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