भक्त-कवि गोस्वामी तुलसीदास के पास मानव चिंता से बढ़कर कोई अन्य चिंता नहीं रही। वाल्मीकि, वेद व्यास के बाद उनकी सामाजिक चिंता की दृष्टि सर्वोपरि है। मानव के भीतरी पक्षों पर उनसे अधिक चिंतित मध्ययुगीन कोई दूसरा संत-भक्त दिखाई नहीं पड़ता। रामकथा में उन्होंने न सिर्फ आने वाले सुखद समाज की कल्पना की, बल्ि
via जागरण संत-साधक
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