डोली में बैठी नंदा की आंखों से अब भी अश्रु की धारा बह रही है। उसकते-उसकते (सिसकते-सिसकते) वह पर्दे से बाहर झांकती है। ठीक सामने गांव का वही थाल (नंदा चौरा) दिखाई दे रहा है, जहां वह सखियों के साथ हंसी-ठिठोली करती थी। वह घने जंगल, जहां से वह अपने बड़ों के साथ घास-लकड
via जागरण धार्मिक स्थान
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