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Friday, May 31, 2013

गंगा नहीं, हम अस्तित्व मिटा रहे

यह विकास है या विनाश, जो हमारी संस्कृति एवं परंपराओं को लील रहा है। गंगा के बिना हम कैसे अपने अस्तित्व को बचाए रख सकते हैं। गंगा हमारी आत्मा है, लेकिन विकास की अंधी दौड़ में यह भी भूल गए। हमें तो वैसी ही गंगा चाहिए, जैसा रूप उसका उद्गम गौमुख में है। तीन दिवसीय प्रवास पर द्रोणनगरी पहुंचे गोवर्धन मठ (पुरी-उड़ीसा) के श



via जागरण धर्म समाचार

http://www.jagran.com/spiritual/religion-not-ganga-we-are-being-erased-10439537.html

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