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Thursday, November 21, 2013

अपने जीवन को प्रेममय बनाना मनुष्य का धर्म है

प्रेम का अनुभव। जिस प्रकार स्वस्थ रहना, सुखी रहना और आनंदित रहना मनुष्य का अपना धर्म है उसी प्रकार प्रेम करना, प्रेम का अनुभव करना और अपने जीवन को प्रेममय बनाना भी मनुष्य का धर्म है। जैसे अप्रेम एक बीमारी है उसी प्रकार अपने स्वभाव धर्म से गिर जाना भी बीमारी का लक्षण है। गहनता से देखें तो इस दुनिया में प्रेम के सिवाय और कुछ है ही नहीं




via जागरण संत-साधक

http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-make-your-life-loving-religion-of-man-10877737.html

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