Loading...
Saturday, November 16, 2013

ज्योतिर्मय परंपरा को लगे जब जीवंत तरुणाई के पंख

नजारे वही होंगे और सितारे भी वही होंगे। नहीं होंगे तो बस 'मुन्नन भइया' हमारे नहीं होंगे। असमय ही दिवंगत सत्येंद्र मिश्र 'मुन्नन भइया' के बगैर महोत्सव के इस इंद्रधनुषी रंग की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। अपनी कल्पना की ऊंची उड़ान के बूते ही घाट के इस शुद्ध आध्यात्मिक उत्सव को सीमा पर बलिदान देने वाले सेना के शहीदों की शहाद




via जागरण धर्म समाचार

http://www.jagran.com/spiritual/religion-the-tradition-began-when-lit-vibrant-youthfulness-wings-10865872.html

0 comments:

Post a Comment

 
TOP