नजारे वही होंगे और सितारे भी वही होंगे। नहीं होंगे तो बस 'मुन्नन भइया' हमारे नहीं होंगे। असमय ही दिवंगत सत्येंद्र मिश्र 'मुन्नन भइया' के बगैर महोत्सव के इस इंद्रधनुषी रंग की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। अपनी कल्पना की ऊंची उड़ान के बूते ही घाट के इस शुद्ध आध्यात्मिक उत्सव को सीमा पर बलिदान देने वाले सेना के शहीदों की शहाद
via जागरण धर्म समाचार
http://www.jagran.com/spiritual/religion-the-tradition-began-when-lit-vibrant-youthfulness-wings-10865872.html
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