मैया मोरी मैं नहिं माखन खायौ। भोर भये गइयन के पांछे, मधुवन मोहि पठायौ।। जुबां पर ये बोल आते ही ब्रज रस की मिठास दिमाग पर छाने लगती है। सूरदास और रसखान के ऐसे कालजयी साहित्य ने ही तो ब्रज भाषा को साहित्य जगत के महाशिखर पर आरूढ़ किया। वक्त के साथ इस परंपरा को दूसरे साहित्यकार सींचते रहे। इसके बाद भी ब्रज धरा को गुरु
via जागरण धर्म समाचार
http://www.jagran.com/spiritual/religion-mohe-deo-values-in-the-constitution-i-braj-ladihli-in-bhashan-10948923.html
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