आपके जीवन में असफलता के पल कुछ हद तक निराशा रूपी अंधकार के पल हो सकते हैं, लेकिन यदि हम इसी को सब कुछ मानकर घर बैठ जाएं, घर के दरवाजे और खिड़कियां बंद कर लें, तो हम वास्तव में असफल हैं। कालांतर में यही असफलता हमारी चिरसंगिनी बन जाती है। अब सवाल उठता है कि आखिर हम ऐसी भावना को अपने दिल में जगह क्यों देते हैं?
via जागरण धर्म समाचार
http://www.jagran.com/spiritual/religion-be-optimistic-10990524.html
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