ऋचाओं से लेकर सहज किताब के पन्नों तक में पर्यावरण रक्षा के सूत्र स्वस्थ वातावरण का आहवान करते मिलते हैं। राजे-रजवाड़े, तैमूर-तानाशाह या फिर रहा हो फिरंगियों का न ढलने वाला सूरज। पर्यावरण रक्षा की चिंतनशील परम्परा समय संग परछाईं की तरह चलती रही। कभी देवता बनकर तो कभी साथी बन। शमी, नीम, पीपल, बट (बरगद), इमली, आम
via जागरण धार्मिक स्थान
http://www.jagran.com/spiritual/mukhye-dharmik-sthal-drowning-in-your-own-water-tank-10975450.html
0 comments:
Post a Comment