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Friday, March 14, 2014

कान्हा करते रहे मनुहार, चंचल गुजरियां ना मानीं

यह भी बृज की होली का ही हिस्सा था, लेकिन अंदाज बरसाना और नंदगांव की लठामार होली से जुदा। कान्हा मनुहार करते रहे तो मां यशोदा भी कहती रहीं-कान्हा छोटे हैं, छड़ियों से चोट लग जायेगी, लेकिन गोकुल की चंचल गुजरिया कान्हा संग छड़ियों से होली खेलती रहीं। फिर क्या था, कान्हा भी रंग में आ गये और गोपियों के साथ दौड़-दौड़ क




via जागरण धर्म समाचार

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