एक प्रतिष्ठित संस्थान में कार्यरत मैनेजर को यह भ्रम हो गया कि उसके बिना संस्थान का काम नहीं चल सकता। चूंकि वह संस्थान के सारे दायित्वों का निर्वहन बहुत अच्छी तरह से कर रहा था, इसलिए मालिक भी उस पर खूब भरोसा करते थे। उसे इसी बात का अभिमान हो गया कि उसके
via जागरण संत-साधक
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