चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की समाप्ति के साथ ही परिवेश में एक परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगता है। इस परिवर्तन के कई स्तर और स्वरूप हैं। पहला परिवर्तन है ऋतु परिवर्तन। ऋतुओं के संधिकाल में नवरात्रों का आयोजन वास्तव में मनुष्य के वाह्य और आंतरिक परिवर्तन में संतुलन स्थापित करना है। जिस प्रकार वाह्य जगत में परिवर्तन होता है उसी प्रकार मनु
via जागरण धर्म समाचार
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