लोक ऐसा विलक्षण समंदर है, जो तमाम नदियों को आत्मसात करता है और फिर ऐसी ही तमाम धाराओं को जन्म भी देता है। लोक कभी मरता नहीं, बल्कि वह तो तब तक जीवित रहेगा, जब तक कि धरती पर अंतिम मनुष्य है। लोक पर किसी एक का अधिकार नहीं, वह तो आमजन के हृदय से स्पंदित होता है और उसी का बनकर रह जाता है।
via जागरण धर्म समाचार
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