श्रद्धा का भाव। पितरों के प्रति पुत्रों की आस्था। सब कुछ समर्पण करने की लालसा। यहीं से शुरू होता है गयाजी का पिंडदान। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी से प्रारंभ होकर आश्रि्वन शुक्ल प्रतिपदा तक चलने वाला यह 'श्राद्धकर्म' पूरी श्रद्धा और अर्पण के भाव से किया जाता है। पौराणिक पुस्तकें बताती हैं कि गयाजी में 365 वेदियां कभी थी। जिस पर
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